Prarabdh - प्रारब्ध - (असीमित प्रेरणा - Asimit Prerna)

Prarabdh - प्रारब्ध - (असीमित प्रेरणा - Asimit Prerna)


एक व्यक्ति सदैव ईश्वर का नाम लिया करता था। धीरे धीरे उसकी उम्र बढ़ती जा रही थी इसीलिए एक कमरे में ही दिन गुजरने लगे थे।



जब भी उसे दैनिक कार्य जैसे  शौच, स्नान आदि के लिये जाना होता तो वह अपने बेटों को बुलाता था और बेटे ले जाते थे।

कुछ समय बाद बेटो को कई आवाजे लगाने के बाद भी कभी-कभी तो आते कभी नही आते और देर रात को तो नहीं भी आते थे। वे कभी-कभी गंदे बिस्तर पर ही रात बिता दिया करते थे।

और ज्यादा बुजुर्ग होने की वजह से उनकी नज़र भी कमजोर होने लगी थी, एक रात को शौच को जाने के लिये जैसे ही उन्होंने आवाज दी , तुरन्त एक लड़का आया और बड़े ही कोमल स्पर्श के साथ उनको शौच से निवृत्त करवा कर बिस्तर पर लेटा दिया। अब ये रोज का काम हो गया।

एक रात उनको शक हो जाता है कि पहले तो बेटों को रात में कई बार आवाज लगाने पर भी नहीं आते थे लेकिन अब तो आवाज देने के दूसरे ही पल आ जाते है और बड़े कोमल स्पर्श व प्यार से सब दैनिक कार्यो से निवृत्त करवा देता है।

एक रात वो बुज़ुर्ग उस लड़के का हाथ पकड़ लेते है और पूछते है कि सच सच बता तू है कौन ? मेरे बेटे तो आवाज़ देने पे आते ही नही है।

उस अंधेरे कमरे में अचानक एक अलौकिक प्रकाश हुआ और उस लड़के रूपी ईश्वर ने अपना वास्तविक स्वरूप दिखाया।

वह बुज़ुर्ग रोते हुये कहने लगे - हे प्रभु आप स्वयं मेरे मेरे दैनिक कार्यो की निवृत्ती करव रहे है। यदि मुझसे इतने प्रसन्न हो तो मुझे मुक्ति ही दे दो ना ।

प्रभु ने कहा कि जो आप भोग रहे हैं वो आपके प्रारब्ध के कारण है। आप मेरे सच्चे भक्त हैं, हर समय मेरा नाम का सुमिरन करते हैं, इसलिये मैं आपके प्रारब्ध भी आपकी सच्ची भक्ति के कारण स्वयं कटवा रहा हूँ ।

बुज़ुर्ग ने कहा कि क्या मेरे प्रारब्ध आपकी असीम कृपा से भी बड़े है, क्या आपकी कृपा से मेरे प्रारब्ध नहीं कट सकते है।

प्रभु आगे कहते है कि मेरी कृपा तो सर्वोपरि है, ये जरूर ही आपके प्रारब्ध काट सकती है, लेकिन अगले जन्म में फिर  आपको ये प्रारब्ध भुगतने आना पड़ेग। यही कर्मो का नियम है इसलिए आपके प्रारब्ध स्वयं मैं अपने हाथों से कटवा रहा हूँ और इस जन्म-मरण से आपको मुक्ति देना चाहता हूँ।

ईश्वर ने कहा : प्रारब्ध तीन प्रकार के होते है 

पहला मन्द, दूसरा तीव्र, तीसरा तीव्रतम

मन्द प्रारब्ध तो मेरा नाम जपने से कट जाते हैं। तीव्र प्रारब्ध किसी सच्चे संत का संग करके श्रद्धा और विश्वास से मेरा नाम जपने पर कट जाते हैं। पर तीव्रतम प्रारब्ध तो भुगतने ही पड़ते हैं चाहे ईश्वर का अवतार ही क्यों न हो।

लेकिन जो मुझे हर समय श्रद्धा और विश्वास के साथ जपते हैं, उनके प्रारब्ध मैं स्वयं उनके साथ रहकर कटवाता हूँ और तीव्रतमता का अहसास तक नहीं होने देता हूँ ।

प्रारब्ध तो पहले रचा,पीछे रचा शरीर।

तुलसी चिन्ता क्यों करे, भज ले श्री रघुबीर।।

1 Comments

  1. बहुत ही अच्छी जानकारी धन्यवाद सरकारी नौकरी की नई नई जानकारी के लिए एक बार अवश्य विजिट करे SarkariRikti

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