Parsu Parsa Parasram - परसु परसा परसराम - (असीमित प्रेरणा - Asimit Prerna)
आजकल इंसान मोहमाया के मायाजाल में फंसा हुवा है वो इससे कभी बाहर निकल नही सकता। सबको पैसा कमाना है, गरीब को मिडिल क्लास वाला बनना है, मिडिल क्लास वाले को अमीर बनना है और अमीर को सबसे ज्यादा अमीर बनना है। पैसे और इज्जत का सीधा संबंध है, पैसा बढ़ने के साथ साथ इंसान की इज्जत भी बढ़ती जाती है।
चलिए इसी से संबंधित एक कहानी सुनाता हूँ।
कोटा शहर में एक आदमी रहा करता था जिसका नाम था परसराम। पहले वो गरीब था और उसकी कोई इज्जत नहीं थी। सब लोग उसको परसु नाम से बुलाते है। उसने मेहनत करके व्यापार में धन कमाना शुरू किया। फिर उसने एक ट्रेवल एजेंसी खोली।
पैसा आने से उसकी इज्जत बढ़ गयी और लोग उसको परसा भाई नाम से बुलाने लगे। धीरे धीरे उसका व्यापार बढ़ता गया और उसने बहुत सी बसें खरीद ली। अब वो बहुत अमीर आदमी बन गया। शहर में उसकी इज्जत बहुत बढ़ चुकी थी और अब उसको सब परसराम जी कहकर पुकारते थे।
परसराम जी रोज सुबह कुत्ता लेकर चम्बल गार्डन जाते तो रास्ते मे लोग नमस्ते करते, उसके पाँव छूते। वो किसी को कोई जवाब नहीं देता बस हल्के से मुस्कुराकर सबको बोल देता - "घर जाकर बोल दूँगा।"
एक दिन उनके बचपन के दोस्त गुरुदास जी ने उनसे पूछ ही लिया कि "परसराम जी लोग आपको नमस्ते करते है तो आप सबको बोलते हो कि घर जाकर बोल दूँगा..आखिर इसका मतलब क्या है?" परसराम ने जवाब दिया " ये जो लोग नमस्ते करते है वो मुझे नही मेरे पैसों को करते है.. इसलिए मैं घर जाकर तिजोरी खोलता हूँ और उसमें रखे पैसो को बता देता हूँ कि आज इतने लोगों ने आपको नमस्ते किया है..
इससे ये फायदा है कि मुझमे कभी पैसे का घमंड नही आता कि मुझे कितने लोग नमस्ते करते है.. क्योंकि ये इज्जत तो पैसों की हो रही है, मेरी नहीं।"
दोस्तों इसीलिए कहा गया है - माया तेरे 3 नाम..परसु परसा परसराम।