हीरे-मोतियों की वर्षा



एक समय की बात है कि एक गांव में एक पंडित रहता था  उसके पास धन-सम्पत्ति तो कोई थी नहीं  गांव के कुछ बच्चों को पढ़ाकर उनके मां-बाप जो थोड़ा बहुत दे दें उससे अपना गुजारा चलाता था 


इस प्रकार वह गरीबी में जीवन बिता रहा था  हां उसे वैदर्भ मंत्र आता था । वह मत्र ऐसा चमत्कारी था कि उसे पढ़ने पर आकाश से हीरे-मोती आदि जवाहरातों की वर्षा हो सकती थी  पर वह मंत्र तभी पढ़ा जा सकता था जब नक्षत्र चांद व सितारों का खास योग बनता और वह योग वर्ष में केवल एक बार कुछ ही मिनटों के लिए बनता था 



यह बताना कठिन था कि किस घड़ी में वह योग बनेगा  इसलिए बेचारा पंडित ऐसा चमत्कारी मंत्र जानते हुए भी उसका फायदा न उठा पा रहा था उस योग को पकड़ने के लिए कौन वर्ष भर रात को आकाश को देखता रहता 


गरीबी से तंग आकर उसने शहर जाने का फैसला कर लिया उसके साथ उसका एक प्रिय शिष्य भी चल पड़ा  वह शिष्य अनाथ था  पंडित के सीथ ही रहता था  गांव से काफी दूर आने पर पंडित और उसके चेले को एक घने जगल में से गुजरना पड़ा 


उस जंगल में डाकुओं के गिरोह रहते थे जो मौका पातेही उधर से जाने वाले यात्रियों को लूटलेते थे   एक डाकू दल की नजर जंगल से जाते पंडित और चेले पर पड़ी  बस क्या था डाकू उन दोनों पर टूट पड़े  उनकी पोटलियां खोल डाली उसमें सतू के सिवा कुछ नहीं था डाकूओं ने दोनों की तालाशी ली  उन्हें एक फूटी कौड़ी भी न मिली 


पंडित बोला : डाकू सरदारजी, हमारे पास कुछ नहीं है  हमें जाने दीजिए  सरदार बड़ा क्रूर था उसने पंडित को एक पेड़ से बंधवा दिया और बोला : मेरा नाम फूंगा सिंह है  मैं पत्थरों से भी तेल निकाल लेता हूं  मैं तेरे घर वालों से पैसे वसूल करुंगा अगर जिन्दा रहना चाहता है तो अपने चेले को गांव भेजकर पाच सौ रुपये मंगवा ले 


पंडित बेचारा डरकर थर-थरकांपने लगा चेले ने उसे ढानड़स बधाया : गुरु जी मैं गाँव जाकर कुछ न कुछ इंतजाम करही लूंगा आपचिंता नकरो  एक दो दिन में लौट आऊंगा  पर आप वैदर्भ मंत्र के बारेमें मत बताना  वर्ना डाकू आपको सदा के लिए बंदी बना लेंगे 


चेला चला गया रात आई  सदियों के दिन थे ठंड बढ़ने लगी पंडित ठंड से ठिठुरने लगा  भगवान से मदद मांगने के लिए पंडित ने आकाश की और देखा तो चौंक उठा आज आकाश में चांद सितारों व नक्षत्रों का वह महायोग बन रहा था जिसमें वैदर्भ मंत्र पढ़ा जा सकता है  अपनी जान छुड़ाने के उतावलेपन में वह चेले की चेतावनी भूल गया 


पंडित बोला : सरदार, अगर मैं आकाश से जवाहरात की वर्षा कर दूं तो मुझे छोड़ दोगे 

मुझे वैदर्भ मंत्र आता है गय पहले तो डाकू सरदार ने सोचा कि ठंड के मारे पंडित का दिमाग खराब हो गया है  फिर उसने सोचा कि इसकी बात आजमाने में हर्ज क्या है  पंडित को खोल दिया गया 


पंडित ने स्नान किया और मंत्र पढ़ने लगा 

मैत्र समाप्त होते ही आकाश से प्रकाश की धारा-सी नीचे आई  उसी धारा के साथ जगमगाते हीरे, मोती, नीलम व मणियों की बौछार आ गिरी  डाकू खुशी से उछल पड़े  सरदार के आदेश पर सभी डाकू जवाहरात चुनने लगे 


सारे जवाहरात चुनकर चद्‌दर में लपेटकर पोटली बांधी ही जाने वाली थी कि एक और डाकू दल वहाँ आ धमका  दूसरे दल के सरदार ने हवा में गोली चलाते हुए 

कहा : यह सब जवाहरात हमारे हवाले कर दो डाकू फूंगा सिंह बोला : भाई मोहरसिंह इस पंडित को ले जाओ न 


इसे वह मंत्र आता है जिससे आसमान से हीरे-मोती की वर्षा होती है  इसी ने तो यह वर्षा करवाई है   डाकू मोहर सिंह ने पंडित को दबोचा : पंडित चल  हमारे लिए वर्षा करवा पंडित हकलाया-अब वर्षा नहीं हो सकती  मुहूर्त निकल गया है 


क्रोधित मोहर सिंह ने अपनी तलवार पंडित की छाती में घुसेड़ दी उसके साथ ही दोनों डाकू दलों में युद्ध छिड़ गया  कई घंटे मारकाट चली । सभी डाकू मारे गए  केवल दोनों सरदार बचे और आपस में लड़ते रहे  दोनों बराबर की टक्कर के थे 


दोनों बहुत थक गए तो हांफता हुआ फूंगा 

बोला : भाई मोहरे, अब लड़ने का कोई फायदा नहीं  सब मारे गए हैं हम दो ही तो बचे हैं । आधा-आधा बाट लेते हैं 

 मोहर सिंह को भी यह बात जंच गई  वह मान गया दोनों डाकूओं ने सारे जवाहरात पोटली में बाध लिए 


उन्हें बहुत जोर की भूख लग रही थी  थकान ने भूख और बढ़ा दी थी  उन्होंने फैसला किया कि पहले कुछ खाया जाए  फिर इत्मीनान से बैठकर जवाहरात का बटवारा करेंगे  एक जवाहरात की पहरेदारी करेगा  दूसरा निकट की बस्ती से जाकर खाना लाएगा  खाना लाने कौन जाएगा  इसका फैसला सिक्का उछालकर हुआ 


उन्होंने जवाहरात वाली पोटली एक पेड़ की खोह में छिपा दी निकट ही मोहर सिंह मोर्चा बाँधकर पहरे पर बैठ गया फूगा सिंह खाना लाने चल दिया फूला सिंह के जाते ही मोहर सिंह ने सोचा : फूगा सिंह को रास्ते से हटाकर सारे जवाहरात पर अकेले कब्जा किया जा सकता है 


मैं क्यो इसे हिस्सा दूं 

 मैं घात लगाकर बैठूंगा जैसे ही वह खाना लेकर लौटेगा, पीछे से हमला करके एक ही वार में उसका काम तमाम कर दूंगा  बस ऐसा निर्णय कर मोहर सिहं फूंगा सिंह के लौटने के रास्ते में एक बड़े पत्थर के पीछे छिपकर प्रतीक्षा करने लगा 


उधर बस्ती की ओर जाता फूंगा सिंह सोचने लगा कि मोहर सिंह को यमलोक भेजकर सारे जवाहरातों को हड़पा जा सकता है आखिर मोहर सिंहका हक क्या है 

दाल-भात में मूसलचंद की तरह आ कूदा था  फूंगे ने बस्ती में पहुँचकर खूब हलवा पूरी खाई 


फिर मोहरसिंह के लिए हलवा पूरी लेकर उसने उसमें जहर मिला दिया और पोटली ‘बांधकर वापस लौटने लगा जैसे ही फूंगा सिंह बड़े पत्थर के पास से गुजरा उसके पीछे छिपे मोहर सिंह ने पीठ की ओर से उसे भाला मारा 


भला दिल को चीरता हुआ छाती से बाहर निकला  फूंगा वहीं ढेर हो गया  मोहर सिंह ने ठहाका लगाया  फिर वह फूंगा सिंह का लाया खाना खाने बैठ गया  खाना खाते ही मोहर सिंह का शरीर ऐंठने लगा और वह तड़प-तड़पकर मर गय


जब पंडित का चेला वापस लौटा तो उसे वहां पंडित और डाकुओं की लाशें बिछी  मिली  उसने माथा 

पीटा :  गुरु जी तुमने डाकुओं को मंत्र की बात बताने की मूर्खता कर ही डाली  हाय 


सीख : लालच से सर्वनाश हो जाता है  हीरे-मोती व सोने का लालच तो बहुत ही बुरा है 

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🕉️ तत्सत्त्

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