गुरु पर भरोसा



मरदाने की बीबी मरदाने से शिकवा करते हुये कहती है, मुसलमान औरतें मुझे ताना मारती हैं तेरा पति मुसलमान हो कर एक हिंदू के पीछे पीछे रबाब उठा कर दिन रात घूमता रहता है..!!


मरदाना अपनी बीबी को कहता है, तो तुमने उनको क्या जवाब दिया..??


मैं क्या जवाब देती ठीक ही तो ताना मारती हैं, मैं चुप रह गई वाकई में वो बेदी कुलभूषण है बेदीयों के वंश में पैदा हुए हैं और हम मरासी मुसलमान..!!


नहीं तुम्हे कहना चाहिये था मैं जिसके पीछे रबाब उठा कर घूमता रहता हूं न वो हिंदू है न मुसलमान है वो तो सिर्फ अल्लाह और राम का रूप है वो ईश्वर है गुरू है वो किसी समुदाय मे नही बंधा हुआ वो किसी किस्म के दायरे की गिरफ्त में नहीं है..!!


घर वाली यकीन नहीं करती, कहती है अगर एसा है तो वो कभी हमारे घर आया क्यों नहीं और न ही कभी हमारे घर उसने भोजन किया है, अगर आपके कहने के मुताबिक़ सब लोग उसकी निगाह मे एक हैं  तो गुरू नानक कभी हमारे घर भी आयें हमारा बना हुआ भोजन भी करें,

मरदाना कहने लगा चलो फिर आज ऐसा ही सही तूं आज घर में जो पड़ा है उसी से भोजन बना मैं बाबा जी को लेकर आता हूँ..


घर वाली यकीन नहीं करती वो कहती है मैं बना तो देती हूँ पर वो आयेगा नहीं, वो बेदीयों का वंशज हैं बड़ी ऊंची कुल है, वो भला हमारे घर क्यों आने लगे, और फिर मेरे हाथ का भोजन  ? मुझे ऐसा मुमकिन नहीं लगता मैं मुस्लिम औरत हम मरासी मुसलमान..!!


मालूम है मरदाना क्या जवाब देता है  ? मरदाने ने भी कह दिया अगर आज बाबा नानक न आये तो यारी टूटी, पर तूं यकीन रख यारी टूटेगी नहीं..!!


तो अच्छा मैं चलता हूँ, पर साथ में ये भी सोचता हुआ चल पडता है कहीँ घर वाली के सामने शर्मिंदा न होना पड़े, बाबा कहीँ जवाब न दे दे, यही सोचता हुआ चला जा रहा है, अभी २०० कदम ही चला होगा बाबा जी रास्ते में ही मिल गये, दुआ सलाम की सजदा किया स्वाभाविक रूप से पूछ लिया, बाबा जी आप कहाँ चले  ? तो सतगुरु जी कहने लगे मरदाने आज सुबह से दिल कर रहा था दोपहर का भोजन तुम्हारे घर चल कर करूं, तो मरदाने फिर चलें तुम्हारे घर..??


मरदाना रो पड़ा मुंह से चीख निकल गई "बाबा जी" कहने लगा एक छोटा सा रत्ती भर शक मन मे आया था पर बाबा जी दूर हो गया सच में आप सांझे हैं..!!


गुरू तो वो है और वास्तविक गुरू वो है जो मन की शंका मिटा दे, जिस का नाम जिस का ज्ञान जिस का एहसास मन की सभी शंकाएँ दूर कर दे..!!


आतम जीता गुरमति गुण गाए गोबिंद  !!

संत प्रसादी भै मिटे नानक बिनसे चिंद !!                                                    { थिती गउडी म: ५ अंग २९९ }


"जिस तरह सूरज सांझा होता है, इसी तरह अवतारी महापुरूष और संत सांझे होते हैं, और जो सांझा नहीं उसको संत और अवतार कहने की कोई जरूरत नहीं, वोह सूरज नही होगा"  वोह किसी के घर का जलता हुआ टिमटिमाता हुआ दीपक ही हो सकता है और कुछ नहीं वक्त आने पर बुझ जाएगा..!!


गुरु साहब पर किया हुआ भरोसा हमें मरदाने जैसा बना देगा

Post a Comment

Previous Post Next Post